गोकुल में एक मोर रहता था. वह रोज़ भगवान कृष्ण भगवान के दरवाजे पर

गोकुल में एक मोर रहता था. वह रोज़ भगवान कृष्ण भगवान के दरवाजे पर

गोकुल में एक मोर रहता था. वह रोज़ भगवान कृष्ण भगवान के दरवाजे पर बैठकर एक भजन गाता था- “मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, माँ बाप सांवरिया मेरे”.
रोज आते-जाते भगवान के कानों में उसका भजन तो पड़ता था लेकिन कोई खास ध्यान न देते. मोर भगवान के विशेष स्नेह की आस में रोज भजन गाता रहा.
एक-एक दिन करते एक साल बीत गए. मोर बिना चूके भजन गाता रहा. प्रभु सुनते भी रहे लेकिन कभी कोई खास तवज्जो नहीं दिया.
बस वह मोर का गीत सुनते, उसकी ओर एक नजर देखते और एक प्यारी सी मुस्कान देकर निकल जाते. इससे ज्यादा साल भर तक कुछ न हुआ तो उसकी आस टूटने लगी.
साल भर की भक्ति पर भी प्रभु प्रसन्न न हुए तो मोर रोने लगा. वह भगवान को याद करता जोर-जोर से रो रहा था कि उसी समय वहां से एक मैना उडती जा रही थी.
उसने मोर को रोता हुआ देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. आश्चर्य इस बात का नहीं था कि कोई मोर रो रहा है अचंभा इसका था कि श्रीकृष्ण के दरवाजे पर भी कोई रो रहा है!
मैना सोच रही थी कितना अभागा है यह पक्षी जो उस प्रभु के द्वार पर रो रहा है जहां सबके कष्ट अपने आप दूर हो जाते हैं.
मैना, मोर के पास आई और उससे पूछा कि तू क्यों रो रहा है?
मोर ने बताया कि पिछले एक साल से बांसुरी वाले छलिये को रिझा रहा है, उनकी प्रशंसा में गीत गा रहा है लेकिन उन्होंने आज तक मुझे पानी भी नही पिलाया.
यह सुन मैना बोली- मैं बरसाने से आई हूं. तुम भी मेरे साथ वहीं चलो. वे दोनों उड़ चले और उड़ते-उड़ते बरसाने पहुंच गए.
मैना बरसाने में राधाजी के दरवाजे पर पहुंची और उसने अपना गीत गाना शुरू किया-
श्री राधे-राधे-राधे, बरसाने वाली राधे.
मैना ने मोर से भी राधाजी का गीत गाने को कहा. मोर ने कोशिश तो की लेकिन उसे बांके बिहारी का भजन गाने की ही आदत थी.
उसने बरसाने आकर भी अपना पुराना गीत गाना शुरू कर दिया-
मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, माँ बाप सांवरिया मेरे”
राधाजी के कानों में यह गीत पड़ा. वह भागकर मोर के पास आईं और उसे प्रेम से गले लगा लगाकर दुलार किया.
राधाजी मोर के साथ ऐसा बर्ताव कर रही थीं जैसे उनका कोई पुराना खोया हुआ परिजन वापस आ गया है. उसकी खातिरदारी की और पूछा कि तुम कहां से आए हो?
मोर इससे गदगद हो गया. उसने कहना शुरू किया- जय हो राधा रानी आज तक सुना था की आप करुणा की मूर्ति हैं लेकिन आज यह साबित हो गया.
राधाजी ने मोर से पूछा कि वह उन्हें करुणामयी क्यों कह रहा है. मोर ने बताया कि कैसे वह सालभर श्याम नाम की धुन रमाता रहा लेकिन कन्हैया ने उसे कभी पानी भी न पिलाया.
राधाजी मुस्कराईं. वह मोर के मन का टीस समझ गई थीं और उसका कारण भी.
राधाजी ने मोर से कहा कि तुम गोकुल जाओ. लेकिन इसबार पुराने गीत की जगह यह गाओ- जय राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे.
मोर का मन तो नहीं था करुणामयी को छोडकर जाने का, फिर भी वह गोकुल आया राधाजी के कहे मुताबिक राधे-राधे गाने लगा.
भगवान श्रीकृष्ण के कानों में यह भजन पड़ा और वह भागते हुए मोर के पास आए, गले से लगा लिया और उसका हाल-चाल पूछने लगे.
श्रीकृष्ण ने पूछा कि मोर तुम कहां से आए हो. इतना सुनते ही मोर भड़क गया.
मोर बोला- वाह छलिये एक साल से मैं आपके नाम की धुन रमा रहा था, लेकिन आपने तो कभी पानी भी नहीं पूछा. आज जब मैंने पार्टी बदल ली तो आप भागते चले आए.
भगवान मुस्कुराने लगे. उन्होंने मोर से फिर पूछा कि तुम कहां से आए हो.
मोर सांवरिए से मिलने के लिए बहुत तरसा था. आज वह अपनी सारी शिकवा-शिकायतें दूर कर लेना चाहता था.
उसने प्रभु को याद दिलाया- मैं वही मोर हूं जो पिछले एक साल से आपके द्वार पर “मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, माँ बाप सांवरिया मेरे” गाया करता था.
सर्दी-गर्मी सब सहता एक साल तक आपके दरवाजे पर डटा रहा और आपकी स्तुति करता रहा लेकिन आपने मुझसे पानी तक न पूछा. मैं फिर बरसाने चला गया. राधाजी मिलीं. उन्होंने मुझे पूरा प्यार-दुलार दिया.
भगवान श्रीकृष्ण मुग्ध हो गए. उन्होंने मोर से कहा- मोर, तुमने राधा का नाम लिया यह तुम्हारे लिए वरदान साबित होगा. मैं वरदान देता हूं कि जब तक यह सृष्टि रहेगी, तुम्हारा पंख सदैव मेरे शीश पर विराजमान होगा.
राधे-राधे

गोकुल में एक मोर रहता था. वह रोज़ भगवान कृष्ण भगवान के दरवाजे पर Rating: 4.5 Diposkan Oleh: news